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प्यासी माँ / माया मृग
Kavita Kosh से
रेगिस्तान में अन्तःसलिला की अवधारणा पर आधारित
ओ मरु माँ!
तुम प्यासी हो ना?
सदियों से अनबुझी है
ये तुम्हारी प्यास माँ
लेकिन अभी तू
मत हो ‘निरास’<ref>निराश</ref> माँ
तू जन्मदात्री है
जानती है माँ
प्रसव-पीड़ा बिन भला
जीवन जन्मता है क्या?
पीडा को झेल माँ
समझ ले इसे तू
नव जीवन का खेल माँ
किलकारियों का ध्यान कर
आँख बंद कर ले
साँस तेज़ होने दे पर
सिसकी मंद कर ले
आँखों में सपने ले-ले
होंठों को भींच ले माँ
आँसू का नीर पी ले
भीतर को सींच ले माँ
सदियों सही है पीड़ा
बस झेल और पल-भर
रेतीली कूख<ref>कोख</ref> से माँ
तू जीवन पैदा कर ।
शब्दार्थ
<references/>