भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यासी रह गईं फ़सलें शरारत कर गया मौसम / बल्ली सिंह चीमा
Kavita Kosh से
प्यासी रह गईं फ़सलें शरारत कर गया मौसम ।
किसानों के घरों में यूँ उदासी भर गया मौसम ।
हमारे ताल सूखे हैं, हमारे खेत सूखे हैं,
मगर बंजर ज़मीनों में तो पानी भर गया मौसम ।
हमारे गाँव प्यासे हैं, नहीं पीने को भी पानी,
फुहारों से भरे नगरों को गीला कर गया मौसम ।
शिक़ायत हम करें किससे, है मौसम यार दिल्ली का,
कहीं सूखा, कहीं बाढ़ें, लो बेघर कर गया मौसम ।
ये मौसम भी नहीं ’बल्ली’ सुहाने मौसमों जैसा
उड़ाकर धूल सावन में ये साबित कर गया मौसम ।