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प्यासी रह गईं फ़सलें शरारत कर गया मौसम / बल्ली सिंह चीमा

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प्यासी रह गईं फ़सलें शरारत कर गया मौसम ।
किसानों के घरों में यूँ उदासी भर गया मौसम ।

हमारे ताल सूखे हैं, हमारे खेत सूखे हैं,
मगर बंजर ज़मीनों में तो पानी भर गया मौसम ।

हमारे गाँव प्यासे हैं, नहीं पीने को भी पानी,
फुहारों से भरे नगरों को गीला कर गया मौसम ।

शिक़ायत हम करें किससे, है मौसम यार दिल्ली का,
कहीं सूखा, कहीं बाढ़ें, लो बेघर कर गया मौसम ।

ये मौसम भी नहीं ’बल्ली’ सुहाने मौसमों जैसा
उड़ाकर धूल सावन में ये साबित कर गया मौसम ।