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प्यासी है नदिया ख़ुद और प्यासा ही पानी है / रंजना भाटिया

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सुख -दुख के दो किनारों से सजी यह जिदंगानी है
हर मोड़ पर मिल रही यहाँ एक नयी कहानी है
कैसी है यह बहती नदिया इस जीवन की
 
प्यासी है ख़ुद ही नदिया और प्यासा ही पानी है

हर पल कुछ पा लेने की आस है
टूट रहा यहाँ हर पल विश्वास है
आँखो में सजे हैं कई ख्वाब अनूठे
चाँद की ज़मीन भी अब अपनी बनानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जवानी है
 
प्यासी है नदिया ख़ुद और प्यासा ही पानी है

जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यूं लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
 
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है

हर तरफ़ बढ़ रहा है यहाँ लालच का अँधियारा
ख़ून के रिश्तो ने ख़ुद अपनो को नकारा
डरा हुआ सा बचपन और भटकी हुई सी जवानी है
कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
 
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है