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प्यासे के लिए आबे-बक़ा थे नानक / रतन पंडोरवी

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प्यासे के लिए आबे-बक़ा थे नानक
सालिक के लिए राह-नुमा थे नानक
दुनिया को दिया आ के हक़ीक़त का सबक़
आरिफ़ के लिए नूर-हुदी थे नानक।

दरवेश भी थे शाहे-थे नानक
इसरारे-हक़ीक़त का निशां थे नानक
सरशार किया सब को मये-इरफां से
सच ये है कि इक पीरे मुगां थे नानक।

कमज़ोर का ईमान-ओ-अमां थे नानक
ईसार-ओ-मुरव्वत का जहां थे नानक
सरकश के लिए हादिए-कामिल थे 'रतन'
आसाइशे-आलम का बयां थे नानक।

पैग़ामबरे-हुस्ने-अज़ल थे नानक
सर आमदे-अरबाबे-अमल थे नानक
आराम दिया आप ने इंसानों को
दुनिया में महब्बत का महल थे नानक।

तौहीद की तस्वीरे-हसीं थे नानक
फिरदौस-उखुव्वत के मकीं थे नानक
गो फर्शे-ज़मीं पर था बसेरा उन का
रिफअत में मगर अर्शे-बरीं थे नानक।

सर आमदे-खासाने-ख़ुदा थे नानक
दानिन्दए-फरमाने-ख़ुदा थे नानक
क़ुर्बान थी फ़ितरत की तजल्ली उन पर
इंसां थे मगर शाने-ख़ुदा थे नानक।