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प्यास और पानी / कविता भट्ट
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प्यास और पानी के बीच; है जो फासला-
यही है जिजीविषा- जीने का सिलसिला।
भूख से रोटी की दूरी तय करने में अक्सर-
व्यक्ति तय कर लेता है पीढ़ियों का सफर।
वह भटकता है गाँव से नगर औ महानगर;
प्यास-भूख भीरू को भी बना देती; निडर।
माप सकता है वह कई लोकों को डग भर
वामन के जैसे ही नन्हे; किन्तु दृढ़ पग-धर।
प्रसंग में न वामन है; न ही बली की मजबूरी;
है केवल प्यास-भूख से पानी-रोटी की दूरी।