Last modified on 7 जनवरी 2009, at 13:41

प्यास के भीतर प्यास / विजयदेव नारायण साही

प्यास को बुझाते समय
हो सकता है कि किसी घूँट पर तुम्हें लगे
कि तुम प्यासे हो, तुम्हें पानी चाहिए
फिर तुम्हें याद आए
कि तुम पानी ही तो पी रहे हो
और तुम कुछ भी कह न सको।

प्यास के भीतर प्यास
लेकिन पानी के भीतर पानी नहीं।