भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यास बिखरी हुई है बस्ती में / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
प्यास बिखरी हुई है बस्ती में
और समंदर है अपनी मस्ती में
कितना नीचे गिरा लिया ख़ुद को
आप ने शख़्सियत परस्ती में
क्यों करें हम ज़मीर का सौदा
हम बहुत ख़ुश हैं फ़ाक़ा मस्ती में
कल बुलन्दी पे आ भी सकते हैं
ये जो बैठे हैं आज पस्ती में
सूफ़ियाना मिज़ाज है अपना
मस्त रहते हैं अपनी मस्ती में