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प्यास से आकुल फुलाए... / कालिदास
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प्यास से आकुल फुलाये वक्त्र नथुने उठा कर मुख
रक्त जिह्व सफेन चंचल गिरि-गुहा से निकल उन्मुख
ढ़ूंढने जल चल पड़ा महिषी-समूह अधिर होकर
धूलि उड़ती है खुरों के घात से रूँद ऊष्ण सत्वर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!