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प्यास / नवनीत पाण्डे

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अगर बुझ सकती है तुम्हारी प्यास
भर लेता हूं ओक में
अपना सारा पानी
लगा देता हूं होंठों से
पर भरोसा तो दो
फ़िर भी नहीं रहोगे प्यासे