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प्यास / संजय अलंग
Kavita Kosh से
(तन्जानिया-अफ्रीका के एक गाँव में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम देख कर)
तुम को देखकर
आती है, दौड़
प्यासी, वह बच्ची
बुझाने को प्यास
पानी माँगती प्यासी बच्ची
उन छोटे हाथों से
पहुँच जो नहीं है उसकी मुंडेर तक
न ही ताकत इतनी
कि खींच सके वो पानी, कुँए से
तुम सक्षम हो
देने को, पानी उसे
पर झिड़क देते हो तुम उसको
पसन्द नहीं तुम्हें
ताक़त का अपनी यूँ जाया होना
खोयी-खोयी नज़रें
बच्ची की उठी हैं
देखती हैं तुमको, तुम्हारे दर्प को
प्यास बुझी तो तुम्हारी पर
पीछे वो छोटी, अनबूझ, अनथक प्यास