प्रकीर्ण जड़-वर्ग / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
ऋतु - ओ वसन्त परदेश छथि दक्षिण जनिक समीर
एतय न पछबा हवासँ नयन बहाबय नीर।।79।।
मधु मातल! नहि करह तोँ पात क पात निपात
फल रसाल फरते मजरि पुनः पुरनके पात।।80।।
दीप - दीप सिनेह जोगाय कत बाती गुन सजि देल
भेल जोति धर मे तदपि कलि कारिख भरि गेल।।81।।
स्नेही दीपक धनि शिखा सतीक ज्वाला शाप
भस्म भेल उचिते शलभ विषयी कामुक पाप।।81।।
धान - जा धरि नहि ससिगर सगर ता धरि उद्धत धान
फल गुन भरितहिँ गेल झुकि अपनहि नम्र महान।।83।।
पलंग - फूल सेज सजि, वसन शुचि सटलि कामिनी अंग
दोलित तन डोलल न मन सरिपहुँ यती पलंग।।84।।
महल-कुटीर - लखि कुटीर मनहूस, महल,! तोहर मुह पर हँसी
करत मरम्मति फूस, बसि शिल्पी मुह मलि मसी।।85।।
डेंगी - एतय न बस बसहु क चलत ने ट्रेन क चत्कार
अघट नदी डेंगी हमहि पथिक! लगायब पार।।86।।
छाता - रौद - ताप वर्षा - झरी छाता पीठ सहैछ
पुनि विपरीत बसात पड़ि अपनहु उनटि पड़ैछ।।87।।
वर्षा - बुन्नी रौद जत सह बिनु छातहु लोक
किनतु बिना तनि अढ़ कोना बचय चिन्हारय टोक।।88।।
जूता - काँट डाँट सहि, पाँक पड़ि, फाँकि धूलि, मल अंग
मलि मलि, पद आघात सहि जूता चरन प्रसंग।।89।।
गुड्डी राकेट - गुड्डी - गुब्बारा उड़ओ, छनिक इजोत विनोद
रश्मिरथी राकेट बल अन्तरिक्ष धरि सोध।।90।।
कपास - नगन - आबरन, स्वच्छ शुभ अन्तर विशद अतूल
सूत पूत गुनमय - तदपि मान - रहित लघु तूल।।91।।