भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रकीर्ण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
सासुर रस - सासु न सासुर नाम टा से बिनु सारि असार
बिना सरस सरहोजिएँ रस सासुर निःसार।।54।।
तीन (3) अथच छओ (6) जौं बनय भाउजि ननदि क खीस
आँकब (63) तिरसठि माय-धी, सासु-पुतोहु (36) छतीस।।55।।)