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प्रकृति के दो रूप / पद्मजा बाजपेयी

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एक-
प्रकृति तुम्हारा रूप, मनोहर, अनुपम सुन्दर,
कण-कण में है व्याप्त, अवनि से अंबर तक
दो-
प्रकृति की विकरालता, भूकम्प, बाढ़, सूखा,
महामारी खून खराबा, छिन्न-भिन्न कर देता है,
पूरी व्यवस्था आस्था।
हमारी मित्रता, युगों-युगों तक न मिटे
जब तक जियेँ, लिपटे-लिपटे।