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प्रकृति ने सिखाया जीना / हेमा पाण्डेय

मैंने अपने थके कदमों को देखा
अंधकार पर नजर डाली
लेकिन डरने की क्या बात है
मैं धरती के साथ हूँ
धरती मेरी माँ है
धरती मेरा साथ देगी
मैने आगे चलना शुरू किया
घास की भीनी सुगन्ध
पत्थरों की शीतलता
मिट्टी की शक्ति मैंने अपने
तलवों के नीचे महसूस की
मैंने बाजू फैला कर
 हवा को छुआ
धीरे धीरे दोहराना
शुरू किया
माँ, तेरी पहाड़ियाँ, बर्फ़ानी पर्वत
जंगल मुस्करा रहे है
मैं तुम्हारे साथ ही खड़ी हूँ
मैं हार नहीं सकती
मुझे कोई चोट नहीं पहुँची
मुझे घाव नहीं लगे, मैं पूर्ण हूँ
मुझे कोई खत्म नहीं कर सका
तरह तरह के पौधे और
फूलों की डालियाँ
मेरे रास्ते में झुक-झुक आई
पंछी मेरे साथ सीठीयाँ बजा रहे थे
सावन की बून्दें कमल के पत्तों पर
जल तरंग बजा रही थी
मैंने अपने आप को आशावान
इंसान के रूप में पाया।