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प्रकृति भी कितनी क्रूर है?/रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
कैसी घटा घनघोर ये,
बरसी सी है इतनी जोर से।
पलभर में जल ही जल हुआ,
मुंबई को रख दी बोर के॥
कोई तो छत पे चढ़ गया,
कोई तो जल में धंस गया।
कोई पुकारे त्राहि-त्राहि ,
यम सामने कठोर है॥
कोई भूख से बेचैन है,
कोई प्यास से बेहाल है।
बच्चे सिसकियां भर रहे,
और मां भी तो मजबूर है॥
जोड़ा था धन जतन से जो,
सब बह गया बिन यतन के वो।
दिल चीखता ही रह गया,
चलता न कोई जोर है॥
सूरज कहीं दुबक गया,
और वक़्त भी सहम गया।
रात भी ठिठुर गई,
प्रकृति भी कितनी क्रूर है॥
कहने को तो पानी ही था,
पर रच गया कहानी था।
सागर उफनता घर घुसा,
मेंघों का यह प्रकोप है॥