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प्रकृति / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
मैं बहुत डरता हूँ
प्रकृति के प्रकोप से
मैंने भोगा है
उसका कहर।
जब किया गया
मुझे तहस-नहस
कालीबंगा में
अब है वहाँ
सिर्फ खण्डहर
और मेरी अस्थियाँ
मैं तुम्हें
करता हूँ आगाह
मत करो छेड़-छाड़
प्राकतिक सम्पदा से
और मत करो
उसकी ओजोन में छेद।
ऐसा न हो
एक दिन तुम्हे बनना पड़े
मेरी तरह
कालीबंगा के खण्डहर।