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प्रक्रिया / भारत यायावर
Kavita Kosh से
मैं तुम्हारे पास बैठा हूँ
मैं तुम्हारे पास नहीं बैठा हूँ
मैं भटक रहा हूँ जंगल में
जंगल में गुर्रा रहे हैं चीते
चीतों की आँखें लाल हैं
चीतों के पंजे पैने हैं
मैं डर रहा हूँ
मैं बहुत डर रहा हूँ
मैं तुम्हारे पास बैठा हूँ
पर मेरे अन्दर मंडरा रही है एक चील
चील दहशत का नाम है
उसकी चोंच में माँस का एक लोथड़ा है
वह मेरा हृदय है
वह धड़क रहा है
वह तेज़ी से धड़क रहा है
यह मैं कहाँ पहुँच रहा हूँ
कितनी गहराइयों में उतर रहा हूँ