भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रक्रिया / मुकेश चन्द्र पाण्डेय
Kavita Kosh से
सुदूर प्रदेशों से उड़ते शिथिल पँछी
आ पहुंचें हैं आरामदेह पिंजर में,
जटिल हस्त रेखाओं के बीच उलझे हुए कुछ पेचीदा स्वप्न
धूल के पीछे धूमिल होते हैं,
क्षितज के समानांतर एक महीन रेखा साथ चलती है,
स्मृति !
व मृत्यु जीवन के ललाट पर सज्जित
चन्दन टीके सी..
घटनाएँ जो अकारण प्रतीत होती हैं
दर्ज़ होती हैं नियति के खाके में प्रार्थमिकता सूची पर...
जबकि पंचतत्वों से मुक्त ओजस्वी देह
मुस्कुराती है दुखों वाले वर्जित क्षेत्र के निकास द्वार पर....
पलायन एक सुगम विकल्प है
सहजता से फिर लौट आने का..!!
व संघर्ष देहलीज़ पर प्रज्जवलित प्रतीक्षा दीप !!