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प्रजाजनों / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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प्रजाजनों
यह शहर नया है
कहते इसे 'स्मार्ट सिटी' हैं
यहाँ नहीं बसते ग़रीब हैं
जो जन छली-प्रपंची - वे ही
रहते नगरी के क़रीब हैं
युग के प्रभु
जो सिंधु-पार के
उनकी इस पर ख़ास दया है
गुफाघरों में हर सुविधा है
बटन दबाओ -सब हो जाता
उनमें रहते गुणीजनों का
नहीं किसी से कोई नाता
भूमि यहाँ की
सोनबरन है
किन्तु युगों से वह बन्ध्या है
बीच-नगर में बना उधर जो
मणि-ज्योतित है कोट सुनहरा
उसके द्वारे पहरे पर है
एक सिपाही गूँगा-बहरा
'लिव-इन' संगी के
सँग रहती
उसमें एक सुधी कन्या है