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प्रजा और पूँजी / अखिलेश श्रीवास्तव

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पूंजीवादियो की सेनायें सामने थी
उनके रथियों के पास
गेहूँ के बीजो से लेकर
चिता के चइला तक
सब कुछ दमकती पन्नियों में पैक था!

प्रजा निहत्थी थीं
उन्होंने जबरन खुलवाई मुट्ठीयाँ
जिन हाथों में दमडिया नहीं थी
वो काट दिये गये!

धडाधड कटते बाजूओ के बीच
विपन्नो ने मैदान छोड़ दिया
कुछ ने कुँओं की शरण ली
कुछ ने पेड़ों के टहनियों की!
मैं शरणागत हुआ
संधिपत्र पर किये हस्ताक्षर
अपने गेहूँ के खेत उन्हें बेच कर
खरीद लिया गेहूँ का एक पैकेट!

खरीद फरोख्त में शामिल न होता
तो बीच बाजार
बाजार के हाथों मारा जाता!

अब मैं उनकी सेना में शामिल
पैदल मोहरा हूँ
अपने ही बंधुओं की बाजू काटता हूँ!