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प्रजा वर्गकेँ पड़ल प्रयोजन / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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प्रजावर्गकेँ पड़ल प्रयोजन।
अपनामे अपनैती चाही,
भदै, अगहनी चैती चाही,
दूध-दूध आ पानि-पानि लय
गामेमे पंचैती चाही।
खेतक खेत पटौनी चाही,
नहरिक नङड़िसटौनी चाही,
फुर्र-फाँइमे उड़वय वाली
घरनी नहि बिलटौनी चाही।
सुन्दर, स्वच्छ घड़ारी चाही
आ निष्पक्ष भँडारी चाही,
काज कतेको पैघ रहओ
नहि लाम-काफ सरकारी चाही।
मनी झड़य से बीया चाही,
दुन्ना नहि, दूतीया चाही,
थोड़ो सन हो, नीक-निकुत हो,
किन्नहुँ ने ए छीया! चाही।
बेटी नहि अगतीया चाही,
बेटा नहि पछतीया चाही,
एकेटा हो, मुदा अन्हारक
घरमे जरइत दीया चाही।
हृदय पवित्र पड़ोसी चाही,
संयत कमला-कोसी चाही,
देहक नापेँ वस्त्रक संगहि
पेटक नापेँ चाही भोजन
प्रजावर्गकेँ यैह प्रयोजन।
रचना काल 1970