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प्रणय बंध / रचना उनियाल
Kavita Kosh से
तू धरती की हरियाली है, मैं उसका रखवाला हूँ।
सजनी तू मैं तेरा साजन, प्रणय बंध की माला हूँ।।
पग धरती तो पायल बजती,
घुँघरू में ही खो जाऊँ।
रुनझुन की झनझन झंकारों,
से सपनों में सो जाऊँ।।
बिछुवा बिदिया अरु मेहंदी, लगे तुझे दिलवाला हूँ।
सजनी तू मैं तेरा साजन, प्रणय बंध की माला हूँ।।
ढलकें कुंतल कपोल तेरे,
बदरा हैं लगते वैसे।
पावस की बदरी में छिपता,
मुख चंदा का है जैसे।।
तेरे नैनों के सागर में, तैरूँगा मतवाला हूँ।
सजनी तू मैं तेरा साजन, प्रणय बंध की माला हूँ।।
हरित वर्ण मन ओढ़ चुनरिया,
घर तुम दुल्हनिया आना।
वृंद पुष्प बगिया महका कर,
हर मौसम खिलते जाना।।
प्राण प्रिया सुन सौं ये मेरी, उपवन का रखवाला हूँ।
सजनी तू मैं तेरा साजन, प्रणय बंध की माला हूँ।।