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प्रणय लहरियों में सुख मंथर / सुमित्रानंदन पंत

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प्रणय लहरियों में सुख मंथर
बहे हृदय की तरी निरन्तर,
जीवन सिन्धु अपार!
इसका कहीं न ओर छोर रे,
यह अगाध है, तू विभोर रे,
वृथा विमर्ष विचार!
यौवन की ज्योत्स्ना में चंचल
प्रणय उर्मियों में बहता चल,
छोड़ मोह पतवार!
मधु ज्वाला से हृदय पात्र भर
चूम प्रेयसी के द्राक्षाधर,
डूबे या हो पार!