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प्रतिदान / श्यामनन्दन किशोर
Kavita Kosh से
प्यार करता हूँ, कि तुमसे पा सकूँ मैं पीर!
पीर, जिसके घात से
बजते हृदय के तार!
तार, जिससे फूटती है
गीत की झंकार!
सींचने को मैं जलन का बाग
इसलिए ही माँगता दो बूँद दृग में नीर!
जीत उसकी है, कि जल
करभी रहा जो मौन!
व्यर्थ सुख की आस से
जीवन गँवाये कौन?
जान पाऊँ मैं कसक की अमिट-कीमत को,
इसलिए लो माँगता कोमल हृदय पर तीर!
जानता है चाँद से कुछ
मिल न सकता प्यार!
इसलिए ही चुग रहा
युग से चकोर अंगार!
प्यास अपनी रेत पर जाकर मिटाने की,
जानता है दर्द की मीठी दवा अक्सीर!
(6.6.46)