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प्रतिदिन, अपने पदगत होते ही / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
प्रतिदिन, अपने पदगत होते ही, अपने
जन के सिर पर तुम हाथ फेर देते हो!
जल जाय पाप, जो यहाँ पैठना चाहे,
मन्त्रित रेखा से हृदय घेर देते हो!