भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिध्वनि / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत गहरा है
तुम्हारा अन्तःकरण
तभी तो
वर्षों बाद ही
लौट पाती है वहाँ से
प्रतिध्वनि मेरे मौन की

किन्तु जब आती है
तो देर तक
निनादित होता रहता है त्रिलोक