भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतिफल / हरीश करमचंदाणी
Kavita Kosh से
बच्चे की हंसी में
आप पा सकते हैं
फिर से वह सब कुछ
जो छीना रौंदा जा चुका हो आपका
आपको तो बस बचानी है बच्चे की हंसी