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प्रतिभाएं कुम्हलाती हैं / एस. मनोज
Kavita Kosh से
हम शीश झुका प्रसन्न करना चाहते हैं देवता
और सुधारना चाहते हैं अपना भविष्य
इसी क्रम में
हमने शीश झुकाया
भगवान के आगे
राजाओं के आगे
जमींदारों के आगे
नेताओं के आगे
गुंडों के आगे ।
हमारे शीश झुकाने
पूजा करने
फूल, बेलपत्र,अक्षत
धूप-दीप चढ़ाने से भी
देवता नहीं माने तो
हम और जतन करने लगे
क्योंकि हमने देखा है
बादशाहों के दरबार में
नवरत्न भी शीश झुकाते थे
और बादशाह ही पूजे जाते थे
इसलिए हमारे समाज की प्रतिभाएं
पूजी नहीं जाती
शीश झुकाती हैं
वशिष्ट बाबू सरीखी प्रतिभाएँ
निखरती नहीं
कुम्हलाती हैं
और अपना सर्वोत्कृष्ट
समाज को देने के पूर्व ही
प्रकृति की गोद में सो जाती हैं।