प्रतिमान / अभिमन्यु अनत
प्रतिमानों के सौदागर !
तुम्हीं ने कभी
मयाकोवस्की की कविताओं को सुनते ही
हाथ रख लिये थे कानों पर
उसकी मौत के बाद तुम्हीं तो थे
उसकी कविताओं को चिल्लाते फिरते
लोगों की वाहवाही लेते
तुम्हीं ने कभी
पॉल एलूआर की कविताओं पर
पथराव करवाया था
और उसके घर शराब पी आने के बाद
तुम्हीं ने अपने चेलों से
उस पर फूलों की बौछार करवाई थी
तुम्हीं ने कभी
मुक्तिबोध को अबोध
और नेहरू को बेहूदा कहा था
आज इन दोनों के हर ठौर पर
तुम करते फिर रहे जब जयजयकार
यह तुम्हारी मर्ज़ी पर है कि तुम
कविता को अटपटा और अटपटे को कविता कह दो
दुम को सर कह दो और सर को दुम
मैं जानता हूँ कि तुम मुझे नहीं जानते
कभी किसी एक ही खेमे में हम मिले नहीं
इसलिए मेरी कविताएँ क्या हैं
इसे बताने की तुम ज़रूरत समझते भी नहीं
या शायद ये कविताएँ क्या हैं
तुम बता सकते भी नहीं
क्या नहीं हैं, यह बताना तुम्हें अधिक आता है
बस यही मुझे नहीं आता
क्या है मेरी कविता
इस विवाद को भुला ही दें
कुछ और ही कहना है तुमसे
ये मेरी छटपटाहट की कुछ अधूरी पंक्तियाँ हैं
जिनमें कविता बनने के छटपटाहट है
क्या इन अधूरी पंक्तियों के आगे
अपनी उस बड़ी पैनी कलम से
एक भी सही शब्द जोड़ सकने की
हिम्मत है तुम्हारे भीतर
प्रतिमानों के सौदागर !