भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिशत / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सभ केओ चाहैत अछि
केओ ओकरा
राति-दिन
प्रेम करै
करैत रहै
जनम-जनम धरि
मुदा,
केओ नहि चाहैत अछि
प्रेम
बाँटनाइ
सभ सिकुड़ऽ चाहैत अछि
तें ई मुलुक नरक-सन भऽ गेल अछि।

रोज घटि रहल अछि प्रेम
घटिते जा रहल अछि
प्रेमक प्रतिशत।

बढ़ि रहल अछि घृणा
बढ़ले जा रहल अछि
घृणाक प्रतिशत।