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प्रतीक्षा में / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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अमावस की
उस रात का मेरा वह स्वप्न
स्वप्न था या कि कुछ और
चढ़ती हुई घूप थी
और हिमालय पिघल रहा था
समतल की छोटी-बड़ी
नदियों के साथ मिलकर
सारी धरती को डुबो रहा था

अपने को बचाने की कोशिश में
मैं जब हाथ-पाँव मार रहा था
तब तुम प्रभु मेरे पास आये थे
मुझे याद है
मैंने सोचा था-
तुम मुझे बचाओगे
लेकिन बचाने के बजाय
बाढ़ में तुमने मुझे गोतना शुरु किया
मेरे अधर्मों को गिनाते हुए
मैं चींख रहा था-
मेरे प्रभु !
तुम्हारे चित्रगुप्त ने तुम्हें धोखा दिया है
लेकिन तुमने

मेरी बातों को सुनने के बजाय
मुझे अपने सुदर्शन का
भय दिखाते रहे
देवता होने के मद में
तुम भूल गये थे
कि तुम्हारे निर्माण में
मेरा भी कुछ हिस्सा है
और तब मैं अचानक ही
बलभद्र में बदल गया था
तुम्हारे सुदर्शन को
गुस्से में निगल गया था
तुम्हारा सुदर्शन
अपनी तेज गति के बावजूद
निकल नहीं पाया था
मेरी अँतड़ियों को फाड़कर

कैसा था वह स्वप्न !
आमावस का
उस रात का मेरा स्वप्न।
और आज की तारीख
-भूख की
-दहशत की
-उत्पीड़न की तारीख
मैं बरामदे में बैठा
सोचता हूँ
क्या उस रात का स्वप्न
सच नहीं हो सकता