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प्रतीक्षा में / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
प्रतीक्षा में सितारे खो गये !
बितायी थी अकेली रात जिनको गिन,
बने थे धड़कनों के जो सबल संबल,
किरन पूरब दिशा से ला रही अब दिन ;
निराशा और आशा का उड़ा आँचल,
निरंतर आँसुओं की धार से
छायी गगन की कालिमा को धो गये !
नयन पथ पर बिछे, निशि भर रहे जगते
सरल उर-स्नेह से जलता रहा दीपक,
जलन पूरित सभी भावी निमिष लगते ;
युगों से कर रहा मन साधना अपलक,
हृदय में आ प्रिये ! उठते सतत
अच्छे-बुरे ये भाव रह-रह कर नये !
क्षितिज की ओर फैले पंथ से चल कर
कभी हँसते हुए तुम पास आओगे,
बना विश्वास, जीवन के अरे सहचर !
नहीं तुम इस तरह मुझको भुलाओगे,
पपीहे ! कह वियोगी के सभी
अब तो अभागे कल्प पूरे हो गये !
1949