भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतीक्षा / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
कितने दिन बीत गये
- सपन न आये !
जागे सारी-सारी रात
डोला अंतर पीपर-पात
मन में घुमड़ी मन की बात
- सजन न आये !
मेघ मचाते नभ में शोर
जंगल-जंगल नाचे मोर
हमको भूले री चितचोर
- सदन न आये !
भर-भर आँचल कलियाँ फूल
दीप बहाये सरिता कूल
रह-रह तरसे पाने धूल
- चरन न आये !