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प्रतीक्षा / विजया सती
Kavita Kosh से
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
फिर लौटेगा वो मौसम
हवाएँ संदेश ले आएंगी
छँट जाएगा औपचारिक कुहासा
अंतरंग आत्मीयता छा जाएगी
बंधा न रहेगा आह्लाद
अकुलाहट को भी
शब्द मिल जाएंगे
अभिमान की दीवार ढहेगी मेरे मन!
पहचान फिर उभर आएगी।
मैं जानती हूँ इसीलिए तो
सूर्यास्त के रंगों को आँखों में भर कर
प्रतीक्षा करती हूँ
सूर्योदय की !