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प्रतीक्षा / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
चैतन्य हूँ
महा- महिम -
आत्माकाश में
दीप्त -
तेरे उजले
कर्मागार -
बंधन- सहित
बंधित हूँ
किन किन
तारों से
यहाँ- वहां .....
कहाँ से
आई -
पद-प्रक्षालित
करती यह धारा ..!
क्या -उदगम
स्थान पर
अब भी
ठहरी -पानी
की लहरें
खड़ी रही
होंगी -
प्रतीक्षा में ....!