भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतीक्षा / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत प्रतीक्षा की
सड़क ने
अपना कोई
आन मिले
भूला कोई
संग चले
बिछुड़ा कोई
गले लगे

मीलों के पत्थर
गड़े रहे
बिजली के खंबे
तने रहे

जितने-जितने वृक्ष वहाँ थे
वहीं-वहीं सब
अड़े रहे