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प्रतीक्षा / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
बहुत प्रतीक्षा की
सड़क ने
अपना कोई
आन मिले
भूला कोई
संग चले
बिछुड़ा कोई
गले लगे
मीलों के पत्थर
गड़े रहे
बिजली के खंबे
तने रहे
जितने-जितने वृक्ष वहाँ थे
वहीं-वहीं सब
अड़े रहे