प्रथम दृष्टि का मूक इशारा / उमेश कुमार राठी
प्रथम दृष्टि का मूक इशारा
पाकर घट जब मुस्काता है
इश्क़ अचानक हो जाता है
खिड़की खोल नियम से तकना
रोज बहाना करके मिलना
फूल सजाना नित गेसू में
खुशबू पाकर देह महकना
रात दिवस दर्शन पाने को
मन बंजारा अकुलाता है
इश्क़ अचानक हो जाता है
दूरी कब लगती मजबूरी
पाक बदन देता मंजूरी
सिर्फ नशा छाया रहता है
प्रेमिल पल लगते अंगूरी
मन मंदिर में आकर कोई
अक्सर मूरत बन जाता है
इश्क़ अचानक हो जाता है
पुतली बन जाती हैं दर्पण
जब होता है प्रेम समर्पण
खोट नहीं दिखता आँखों को
इतना बढ़ जाता आकर्षण
चित्र विचित्र बना करते हैं
पोरों का रँग भरमाता है
इश्क़ अचानक हो जाता है
साँस सुवासित करता चंदन
आस सुभाषित करता वंदन
डोर परस्पर जुड़ जाती है
जिसको कहते चिर अनुबंधन
सिरहाने पर मीठा चुंबन
नियमित दिल को मधुमाता है
इश्क़ अचानक हो जाता है
गीत लबों पर गुनगुन करते
प्रीत भरी रुनझुन को चुनते
जग जाती है प्यास हृदय में
शीत जलाशय मंथन करते
मीत सुरों की लयबन्दी से
कंठ सुरीला इतराता है
इश्क़ अचानक हो जाता है