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प्रथम नागरिक / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
हमारे भोपाल की प्रथम नागरिक हो तुम
बड़ी झील !
सब की श्रद्धेय
सब की माननीय
दुख-सुख में
सब तुम्हारे पास आते हैं
बड़ी झील !
यहाँ भोपाल में तुम
सबसे सयानी जो हो
तुम्हारी ही सत्त्ाा है यहाँ
चिर नवीन !
युग-युगीन
इसीलिए तो --
यहाँ जो बोलता-बतियाता है
गाता है - गपियाता है
सब में
तुम्हारे आब की ख़ुशबू दिखती है ।