भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रथम मास अखाढ़ हे सखि / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रथम मास अखाढ़ हे सखि श्याम गेला मोहि तेजि यो
कोन विधि हम मास खेपब हरत दुख मोर कोन यो
साओन हे सखि सर्वसोहाओन, दोसर राति अन्हार यो
लौका जे लौके रामा बिजुरी जे चमकै जंगलमे बाजै मोर यो
भादव जल थल नदी उमड़ि गेल चहुदिस श्यामल मेघ यो
एक लोक जब गेल मधुपुर ओतहि भए गेल भोर यो
आसिन हे सखि आश लगाओल आशो ने पुरल हमार यो
एहि प्रीत कारण सेतु बान्हल सिया उद्देश्य श्रीराम यो
कातिक हे सखि छल मनोरथ जायब हरिजी के पास यो
राति सुख दुख संग गमाओल लेसब दीप अकास यो
अगहन हे सखि सारिल लुबधल भांति-भांति केर धान यो
हंस क्रीड़ा करत सरोवर भौंरा लोटय एहिठाम यो
पूस हे सखि जाड़काला बरिसहु हेमगृह जाय यो
तुरत घूर जराय तापल पिया बिनु जाड़ ने सोहाय यो
माघ कामिनी बान्ह यामिनी यौबन भेल जीवकाल यो
बाँचि पतिया फाटु छतिया माधव कोन बिलमाय यो
फागुन हे सखि खेलत होरी उड़त अबीर गुलाल यो
खेलत होली, बोलत बोली सेहो सुनि दगध शरीर यो
चैत हे सखि समय चंचल लोचन चहुँदिस घाव यो
गरजे घन बड़जोर अहाँ दीअ ने पहु घर आनि यो
विषम मास बैसाख हे सखि पिया बिनु निन्द ने होत यो
पिया पिया कए रटय पपीहा कखन होयत प्रात यो
जेठ हरिजी सँ भेंट भए गेल पूरल बारहोमास यो