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प्रथम मास अषाढ़ हे सखि साजि चलल जलधार हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रथम मास अषाढ़ हे सखि साजि चलल जलधार हे।
एहि प्रति कारन सेतु बान्हल सिया उदेष श्रीराम हे॥
सावन हे सखि शब्द सुहावन रिमझिम बरसत बून्द हे।
सबके बलमुआ रामा घरे-घरे ऐलै हमरोॅ बलम परदेश हे॥
भादो हे सखि रैनि भयावन दूजे अन्हरिया राति हे।
ठनका जे ठनकै रामा बिजुली जे चमकै से देखि जियरा डराय हे॥
आसिन हे सखि आस लगाओल आसो ने पुरलै हमार हे।
आसा जे पूरलै रामा कुवरी सौतिनिया के कत राखल लोभाय हे॥
कातिक हे सखि पुण्य महीना सखि सब करै गंगा असनान हे।
सब सखी पहिरै पाट पटम्बर हम धनि गुदरी पुरान हे॥
अगहन हे सखि हरित सोहावन चहु दिश उपजल धान हे।
सामा चकेबा रामा खेल करै सखि से देखि जिया हुलसाय हे॥
पूस हे सखि ओस पड़ि गेल भीजि गेल नामी-नामी केश हे।
जाड़ छेदै तन सुइ सन छन-छन, थर-थर काँपै करेज हे॥
माघ हे सखि जाड़ा लगतु है देह थर-थर काँपै हे।
पिया जे होतिया रामा कोरवा लगैतियौं कटतै जाड़ हमार हे॥
फागुन हे सखि रंग महीना सब सखि खेलै पिया संग हे।
से देखि हमरोॅ जियरा तरसै ककरा पर दियै हम रंग हे॥
चैत हे सखि सब वन फूलै फूलवा जे फूलै गुलाब हे।
सखि सब फूलै रामा पियाजी के संग में हमरोॅ फूल मलीन हे॥
बैसाख हे सखि पिया नहि ऐलै विरह लहकत गात हे।
दिन जे कटै रामा कानतें-कानतें लहकतै बीतै सारी राति हे॥
जेठ हे सखि ऐलै बलमजी पूरल मन केरोॅ आस हे।
बाकी हे दिन सखि मंगल गाबथि रैन बितावथि पिया साथ हे॥