भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रथम मास आखाड़ काया, आसाढ़ जो जन जोहिए / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
प्रथम मास आखाड़ काया, आसाढ़ जो जन जोहिए,
बुझि आगम-निगम प्रभुजी, हरिचरन पदुला हुए।।१।।
सावन सील सुभाव सीतल, दीढ़़ से मन में घरू,
भाव पिरती सुझाव सबसे, कोमल जल में जल रहीं ।।२।।
भादो भगती सजना चहुँ ओर चाफला चहुँ दिस भरी
होत जात प्रगास मंडिल, कठिन जल भवसागर भरी।।३।।
आसिन आसा दीढ़ कइके, जोग आसन साधिए
धीरे-धीरे गगन ऊपर सुरत डोरी लगाइए।।४।।
कातिक कंत कोमल दोआदसी जहां हंस के बास है
चुनत मोती मांग सरवन तंत लाहरा तुरंक हैं।।५।।
अनहद झीनी-झीनी बाजत, धन-धन जीवछ अगहन आई है,
दीन दीपक जोत जगमग, भाव न सोभा चाइए।।६।।
पूस-पुरन, हरि चरन पढु, चित चकोरा झकोरिए
मोती के बूंद जोहे पपीहरा, राम राम अधारिए।।७।।
त्रिकुट बेहकुट बहत सागम, जोग ध्यान लगाइउ
सीख साधु समाज धासन, जोग ध्यान लगाइउ ।।८।।
दरप जोत सरूप सरगुन मास फागुन आइउ
अचल राज उखंड मंडिल, त्रिपुल दल नवखंड हैं।।९।।
चइत चंचल गयो चिन्ता, पाइ शब्द सरूम काथी
धीरे-धीरे गगन ऊपर सुरत डोरी लगाइए।।१0।।
बइसाख साखा छोड़ि देहु, छोड़ि देहु जमे ब्रम के फंद हे
मूल गहि क पारे उतरे, आरौ रामा ना काल है।।११।।
जैरू जीव समारु अपने, जैठ अवसर दाँव है
आनन्द बरहो मास गावे, राम राम अधारिए।।१२।।