प्रदूषण / शशिधर कुमर 'विदेह'
प्रकर्षेण दूषित सभ किछु थिक, अनारोग्य केर जननी।
ई दैवक नञि छी प्रकोप, छी मनुक्खक अपनहि करनी॥
कोनहु बस्तु जञो गन्दा भऽ गेल, दूषित ओ कहबैत’छि।
प्रकर्षेण मतलब अतिशय अछि, सीमा–हद जनबैत’छि॥
सीमासँ बेसी अबाज जञो, कहबै ध्वनिक प्रदूषण।
ऊँच सुनब, अनुनाद-नाद, बाधिर्य एकर अछि लक्षण॥
दुषित हवा जञो साँस लेल तँऽ, साँसक होएत बेमारी।
दमा-एलर्जी आओर पता नञि, की-की महामारी॥
दुषित पानि पिउबा सँ जेसब, होइत’छि से बुझले अछि।
पेट खड़ाब आ हैजा पेचिश, सभटा देखले–सुनले अछि॥
मृदा-भूमि सेहो दूषित भऽ, बहुते करैछ समस्या।
कऽलक पानि आ खेतक उपजा, माहुर सनक अभक्ष्या॥
रेडियोधर्मी अछि पदार्थ जञो, विकिरण करय प्रदूषण।
धरा-पानि तँऽ दूषित अछिए, सीधे मारक लक्षण॥
एखनहुँ जँ संसार ने चेतत, बदलत नञि निज करनी।
हाथ ने किछु बाँचत भविष्यमे, अपन दशा पर कननी॥