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प्रबन्धक का गीत / कार्लोस ओकेन्दो दे आमात / अनिल जनविजय

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मैं बेहद डरा हुआ था
और एक पागलपन से घिरा हुआ था

मैं डर रहा था
कि बन न जाऊँ पहिया
बदल न जाए मेरा रंग
उठा न लूँ कोई ग़लत क़दम

क्योंकि बच्चों जैसी थीं मेरी आँखें

मेरा दिल पागलों की
बिन बाहोंवाली
उस कमीज़ की तरह था
बन्द होते हैं जिसके
सामने के भी बटन

लेकिन आज जब मेरी आँखें
पहने हुए हैं एक लम्बी पतलून
मुझे दिखाई दे रही है वह सड़क
जो फ़रियाद कर रही है
क़दमों की ।

मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल स्पानी में पढ़िए
            Carlos Oquendo de Amat
           POEMA DEL MANICOMIO

Tuve miedo
y me regresé de la locura

Tuve miedo de ser
una rueda
un color
un paso

PORQUE MIS OJOS ERAN NIÑOS

Y mi corazón
un botón
más
de
mi camisa de fuerza

Pero hoy que mis ojos visten
pantalones largos
veo a la calle
que está mendiga
de pasos.