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प्रबन्धन / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
पुराने किस्से कहानियों में सुना था
ठगों के गॉव के बारे में
ठगी बहुत बुरा काम होता था
धीरे-धीरे अन्य चीजों की तरह
ठगी का भी विकास हुआ
अब ये काम लुकछिप कर नहीं बल्कि
खुलेआम प्रचार प्रसार करके
सिखाया जाने लगा
ठगों के गॉव अब किस्से कहानियों में नहीं
शानों शौकत से
भव्य भवनों में आ बसे बसे हैं
जहॉ से निकलते हैं
लबालब आत्मविश्वास से भरे
छोटे-बडे ठग
जो जितने ज्यादा लोगों को ठग लेता है
उतना ही बडा प्रबन्धक कहलाता है।