प्रभंजन / महेन्द्र भटनागर
आ रहा तूफ़ान है,
जीत का वरदान है,
शक्ति का ही गान है,
देश के अभिमान पर
प्राण का बलिदान है !
आ रहा तूफ़ान है !
स्वत्व का संग्राम है,
आज कब विश्राम है
युद्ध जब प्रतियाम है ?
गर्व मिथ्या नष्ट है,
स्वार्थ का क्या काम है ?
स्वत्व का संग्राम है !
विश्व में पाखंड जो,
द्वन्द्व है उद्दण्ड जो,
कँप रहा भूखंड जो,
अग्नि में सब जल रहा
हो रहा है खंड जो !
विश्व में पाखंड जो !
मुक्ति का उपहार है,
स्नेहमय संसार है,
शांति की झंकार है,
लूट शोषण, नाश की
नीति पर अधिकार है !
मुक्ति का उपहार है !
क्रांति का इतिहास है,
पास में विश्वास है,
सृष्टि में मधुमास है,
विश्व की बढ़ती हुई
मिट रही अब प्यास है !
क्रांति का इतिहास है !
छिप चुके कटु शूल हैं,
खिल रहे मधु फूल हैं,
कौन जो प्रतिकूल है ?
देख जीवन, आज का
कह रहा जो, ‘भूल है’ !
छिप चुके कटु शूल हैं !:
1944