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प्रभु ई लोकतंत्र उद्धारोॅ / अमरेन्द्र

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प्रभु ई लोकतंत्र उद्धारोॅ।
खाली वैतरणी रोॅ गैयै पर नै आँसू ढारोॅ।
मलकाटोॅ पर रोज कटै छौं लाखो बकरी-पाठा।।
मेमना-छेमना अलगे जब्भेॅ-ऊ तेॅ गिन्है नै पारोॅ।
तोरोॅ ब्रह्मा के मूँ नाँखी चारे टा छौं सेना।
हिन्नें रावण के मूँ जतना जाति-सेना छै ठाड़ोॅ
तारोॅ छोड़लोॅ ढाकर सीनी ठामे-ठाम विल्हामोॅ।
मँजरैलोॅ धानोॅ के रौदौं। मारेॅ पारभौत्र? मारोॅ।
ई शासन अरकसिया भेल्हौं, परब बिना अरगासन।
जे जी के ओरान पुराबेॅ-कौनें उठैतौं भारोॅ।
विनती अरज करै खरगोसें-धरती गाय तोंय फाटोॅ।
बाघोॅ कान सेँ नेतोॅ आवै, भालू दै छै हँकारोॅ।
केकरा सेँ की बोलतै जाय केॅ, बक्खो छै अमरेन्दर।
सारहैं जीजा जी केॅ बौलै-की करभैं तोंय सारोॅ।