प्रभु की याद / सुशीला बलदेव मल्हू
जब सुबह-सुबह चिड़िया चहकें,
और चहक-चहक सोने वालों की,
नींद दूर भगाती हैं,
प्रभु के गुण गाती है
मुझे उस प्रभु की याद आती है,
जिस की सारी खेती है।
जब सुबह-सुबह की सूरज किरणें,
सुरभि को जीवन देती हैं,
स्वर्णिम ज्योति को सजाती हैं,
मुझे उस प्रभु की याद आती है,
जिसकी यह सारी खेती है
जब सुबह-सुबह शबनम की बूँदें,
मोती बन पुष्प सजाती हैं
दिनकर किरणें दमकाते हैं
मुझे उस प्रभु की याद आती है,
जिसकी यह सारी खेती है।
जब सुबह-सुबह एक-एक पत्ता,
रेशम के वस्त्र में हो लिपटा,
जल से उठ नमन करे कलिका,
मुझे उस प्रभु की याद आती,
जिसकी यह सारी खेती है।
जब सुबह-सुबह पूरब के गगन,
लाली-धानी चुनरी को पहन,
दुल्हन जैसे चली पिया मिलन,
मुझे उस प्रभु की याद आती है,
जिसकी यह सारी खेती है।
जब सुबह-सुबह प्रेम-पाश में,
खिंची जाती हूँ प्रभु प्यास में,
उनके मिलन की अरद आस ले,
आसन लेती हूँ उनकी याद में,
तब हृदय में जगती भक्ति अग्नि,
अनुभव होता है उस प्रभु का,
जिसकी मैं भी हूँ जीवित खेती।