भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रभु जी कहिया हमे बोलइबऽ / विनय राय ‘बबुरंग’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रभुजी कहिया हमें बोलइबऽ हो.... प्रभु जी....।

नागन बनि के डँसे पतोहिया कहिया ले डँसवइबऽ।।
मदहोस बेटन से कवले हमके पचलत्ती खियवइबऽ।।
हो.... प्रभु जी....।

हाथी ले अइबऽ कि घोड़ा ले अइबऽ कि गदहा पर ले जइबऽ।
पार लगावऽ इ महासमर से कि करमनसवे में डूबइबऽ।।
हो.... प्रभु जी....।

आरक्षण क जुग बा आइल का एहू में आरक्षण लगवइबऽ।
आरक्षण लगी त सुन ल प्रभु जी नांव हमरो दरज करवइहऽ।।
हो.... प्रभु जी....।

जाये के बेरिया भूख लगी त का हमके खियवइबऽ।
कुछ ना त हम कवि सिरोमणि चाय बिसकुट दिलवइहऽ।।
हो.... प्रभु जी....।

हमरा पास में बाटे मोबाइल एक दिन पहिले बतइहऽ।
नम्बर डायल करत क पहिले तिनगो जीरो लगइहऽ।।
हो.... प्रभु जी....।

कविता खूब सुनाइब प्रभु जी हमके सम्मान दिलवइहऽ।
इहवों मिलल सम्मान बहुत बा जनि दूतन से पिटवइहऽ।।
हो.... प्रभु जी....।

जब आइब त अगिला जनम में हमके कविये बनइहऽ।
एतने अरज हमार प्रभु जी जनि तूँ भांट बनइहऽ।।
हो.... प्रभु जी....।