प्रभु से रहित, विषय-विष-पूरित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग वागेश्री-ताल कहरवा)
प्रभुसे रहित, विषय-विष-पूरित महा भयानक यह संसार।
अमित दुःख-संकट-भय विपदा, आधि-व्याधिसे भरा अपार॥
उठतीं इस भव-सागर में नित पाप-तापकी अमित तरंग।
जन्म-मरण, आसुरी योनि, अति नरक-यन्त्रणा, कठिन कुढंग॥
विषय-विलास-निरत, मोहावृत मनुज विषयोंमें ही सुख मान।
नित्य पड़ा रहता भवमें ही, भूल भविष्यत्का सब भान॥
ममता-राग, विषय-अभिलाषा-वश हो करता रहता पाप।
अहंकार-अभिमान भरा वह रचता निज दुःखोंको आप॥
भोग-कामना, ममता ही है सब पापोंका निश्चय मूल।
इनमें फ़ँसा न जा पाता वह कभी भवोदधिके उस कूल॥
सब ममता जो प्रभुसे कर, करता प्रभुमें विशुद्ध अनुराग।
सेवक बन, करता प्रभुकी जो सेवा, अहंकार कर त्याग॥
पाता वह मानव-जीवनकी परम सफलता अति बड़भाग।
‘भगवत्प्रेम’ सुदुर्लभ, सभी मिटाकर भुक्ति-मुक्ति की माँग॥