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प्रभु हो, हमार माथा नवां द / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह 'श्रीमंत'

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प्रभु हो,
हमार माथा नवां द
अपना चरनन का माटी में।
हमिता हमार कुल्ही
ले के डुबा द हमरा
आँखन का पानी में।।
अपना के मान देके
अपने अपमान कइलीं।
”हमहूँ केहू हईं“ समुझ
जीवन जीआन कइलीं।।
घूम फिरके खाली हम
अपने परिकरमा कइलीं।
छने छने छीन होके
मउअत का ओर गइलीं।।
बड़ा बा भरोसा तहरा
चरनन का माटी में।
हमिता हमार कुल्ही
लेके डुबा द हमरा
आँखन का पानी में।।
अईसन करऽ जे कबहूँ
हम अपना खातिर ना
आपन परचार करीं
आपन उचार करीं।
हमरा एह जिनगी के
माध्यम बना के प्रभु
पूरन करऽ आपन इच्छा
विनती तहार करीं।।
बानी में दे द तूं
आपन अपार शांति।
प्रानन में भर द तूं
आपन सतेज कांति।।
हमरे के ओठगन बनाके तूं ठाढ़ हो जा
हमारा हृदय रूपी पदुम के पँखुड़ियन पर।
प्रभु हो,
विनती हमार इहे
तहरा से हर दम बा
हमरा अहंकारी मन के
निरमल बना द ना।
हमार माथा नवा द
अपना चरनन का माटी में
हमिता हमार कुल्ही
लेके डुबा द हमरा
आँखन का पानी में।।